एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में रमण नाम का एक व्यक्ति रहता था। रमण गरीब था, और अक्सर उसे एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता था। उसका शरीर तो भूखा रहता ही था, पर सबसे ज़्यादा उसका मन भूखा रहता था – कुछ पाने की, कुछ बेहतर करने की, इस गरीबी के जाल से निकलने की भूख।
वह हर सुबह सूरज निकलने से पहले उठ जाता और काम की तलाश में गाँव भर भटकता। कभी किसी खेत में मज़दूरी मिल जाती, तो कभी किसी साहूकार के यहाँ छोटा-मोटा काम। जो भी मिल पाता, वह उसी से अपना और अपनी बूढ़ी माँ का पेट भरता था। लेकिन रमण का मन हमेशा बेचैन रहता। उसे लगता था कि वह सिर्फ़ पेट भरने के लिए नहीं बना है, बल्कि उसका जीवन कुछ और भी हो सकता है।
एक दिन, रमण ने सुना कि पास के शहर में एक बड़ा व्यापारी आया है, जिसे मेहनती और ईमानदार लोगों की ज़रूरत है। रमण के मन में एक उम्मीद जागी। उसने अपनी माँ से आशीर्वाद लिया और कुछ सूखी रोटी और पानी लेकर शहर की ओर चल पड़ा।
शहर पहुँचकर रमण को एहसास हुआ कि यहाँ भी संघर्ष कम नहीं था। भीड़-भाड़, शोरगुल और हर चेहरे पर एक अजीब सी बेरुखी। कई दिनों तक उसे कोई काम नहीं मिला। भूख और थकान से उसका शरीर टूट रहा था, लेकिन उसके मन की भूख अभी भी ज़िंदा थी। वह जानता था कि उसे हार नहीं माननी है।
एक शाम, जब वह एक मंदिर के बाहर बैठा था, तब उसने एक धनी व्यक्ति को देखा, जो मंदिर में दान कर रहा था। रमण को पता चला कि यह वही व्यापारी है जिसके बारे में उसने सुना था। रमण ने हिम्मत की और व्यापारी के पास गया। उसने अपनी पूरी बात बताई, अपनी गरीबी, अपनी भूख और काम करने की अपनी प्रबल इच्छा।
व्यापारी ने रमण की आँखों में देखा। उसे रमण की ईमानदारी और उसके मन की सच्ची भूख दिखाई दी। व्यापारी ने उसे अपने गोदाम में काम दे दिया। रमण ने पूरी लगन और ईमानदारी से काम किया। वह कभी शिकायत नहीं करता था और हमेशा सीखने के लिए उत्सुक रहता था। उसकी मेहनत और लगन देखकर व्यापारी बहुत प्रभावित हुआ।
धीरे-धीरे रमण ने काम सीखा और अपनी सूझबूझ से गोदाम के कई कामों को और बेहतर बना दिया। उसकी शारीरिक भूख तो अब मिट चुकी थी, उसे भरपेट खाना मिलता था, लेकिन उसके मन की भूख उसे और भी ज़्यादा सीखने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रही। कुछ ही सालों में, रमण ने अपनी मेहनत और बुद्धि से व्यापार में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया।
रमण ने कभी अपने पुराने दिनों को नहीं भुलाया। उसने अपनी कमाई का एक हिस्सा अपने गाँव के गरीब लोगों की मदद करने में लगाया। उसने यह साबित कर दिया कि असली भूख पेट की नहीं, बल्कि मन की होती है – कुछ करने की, कुछ बनने की, और अपने सपनों को पूरा करने की भूख। और जब मन में ऐसी भूख हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।